दिवाली (यादों  भरी)

क्या अब भी घरों में इस वक़्त होती है पुताई ?

क्या अब भी खील-बताशे कहलाते हैं मिठाई?

क्या नए कपड़ो का अब भी होता है इंतज़ार?

क्या अब भी मिटटी के दीयों को रात भर भीगा कर, दिन भर सुखा कर,

शाम के लिए करते हैं तैयार?

मुट्ठी भर फूलझरियो को सोच सोच कर जलाना,

और अंत तक बचाते हैं क्या अब भी वो पांच अनार?

सादी सी थी, दून की सर्दियों में लिपटी वो दिवाली,

मसूरी की ठंडी हवाओ ने कईं बार दियों की पूरी कतार बुझा दी ,

पर अब सात समंदर पार,

सफ़ेद से होते बालों पे मेहँदी लगाते हुए,

खुद ही जल जाते हैं, यादो के कितने छोटे-बड़े दिये 

यहाँ तो यादो का पिटारा होता ही नहीं खाली 

तुम वहाँ शायद साल में सिर्फ एक बार मनाते हो दिवाली!

#दिवाली 

#दून 




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